गुरुवार, 19 जून 2014

सर्वोत्तम की उत्तरजीविता

          
पेड़ो के अंतस में ज़रूर गहरे घाव हैं।
इतना गहरा हरापन !
छेड़े हुए घाव ही दे सकते हैं।
मेरे विस्मय का आधार घाव नहीं वो भाव हैं,
जिनके अवलम्बन से तनता है, इनका तना,
जिनके नियमन से निखरता है, इनका सौंदर्य,
जिनके समंजन से दशा-दिशा नहीं खोते बल्कि वायु के वेग को मान दे कर झुक जाते हैं।
मर्म के भाव और चर्म पर पड़ते प्रभाव के मध्य संतुलन विस्मित करता है,
घाव, हरापन, पेड़ या डार्विन
'सर्वोत्तम की उत्तरजीविता 'के सिद्धांत का प्रतिपादक कौन है?

बुधवार, 18 जून 2014

दुनियादारी

उदारीकरण के इस दौर में अच्छा होने से आज की दुनिया में  ज्यादा जरूरी है अच्छा दिखना और अच्छा बनना।जो आप अंदर से नहीं हैं वो बन के दिखाना।
इस दिखने और बनने की प्रक्रिया में एक खास तरह के दृष्टिकोण, अभियोग्यता और कौशल समूह (डिप्लोमेसी एक लोकप्रिय प्रभावी कौशल है) का अर्जन करना पड़ता है।अनवरत साधना करनी पड़ती है व्यक्ति को कृत्रिम छवि को साधने के लिए।अच्छा बनने के लिये।
न्यूनाधिक रूप से इस त्रासदी का शिकार समाज में सभी हैं।सामान्य प्रोफेशनल्स हों या सेल्स , मार्केटिंग और कार्पोरेट से जुड़े लोग ये केवल 'प्लास्टिक स्माइल' का एकमात्र शस्त्र प्रयुक्त नहीं करते बल्कि अपने शस्त्रागार में  अन्य उन्नत दिव्यास्त्रों का दिव्य संग्रह रखते हैं। यहां तक कि आध्यात्मिक जगत की बड़ी विभूतियां भी इससे अछूती नहीं हैं।सेल्फ प्रमोशन हो या दूसरी मार्केटिंग गिमिक्स (रणनीतियां) बड़ी संख्या में धर्माधिकारी मार्केट में मौजूद आधुनिकतम सेवाओं का उपयोग करते हैं।इसलिए वो और अच्छे लगते हैं।

औपचारिकता और शिष्टाचार के कई नियम कई बार एक खास दिखावे से अधिक क्या होते हैं? जब तथाकथित नैतिकता और शिष्टता हमसे हमारी इच्छा के विरूद्घ जब्त करने को मजबूर करती है।इससे भी बढकर कई लोग महज निज स्वार्थों के वशीभूत अपने साफ्टवेयर को बार बार करप्ट करते हैं और बार
-बार इसका नये सिरे से इंस्टालेशन करते हैं।एक्सटीरियर डेकोरेशन के ये विशेषज्ञ इन्टीरियर डेकोरेशन के भी विकट विद्वान होते हैं।नतीजा , अपनी आत्मा पर खास व्यवसायिक और व्यवहारिक शोख़ रंग तरतीब और तरकीबवार चढ़ाते रहते हैं।जितना इनकी आत्मा इन कारकों से भारी होती रहती है, तरक्की के नये आयाम खुलते रहने का इनका आत्मविश्वाष बढ़ता रहता है।

सरलता भरा जीवन शोषण को आमंत्रित करता रहता है।सीधे होने का काॅम्पलीमेंट व्यक्ति को समाज से शोषण करवाने और करवाते रहने पर ही मिलता है।सतर्कता भरा व्यवहार करने वाला व्यक्ति जो जोखिम के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर लेता है, उसे सरल या सीधा नहीं माना जाता (भले ही वह किसी का अहित न करता हो)।
महत्वाकांक्षी और आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति की व्यैक्तिता एक साथ कई व्यक्तियों और समूहों को विचलित कर देती है।ऐसे व्यक्ति को शुरूआत से अच्छा नहीं माना जाता और यदि वह दृढतापूर्वक अपने को सिद्ध कर दे तो अंत में वो भला मान लिया जाता है ।इतिहास  मे इसके अनेक उदाहरण हैं पर भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक कैरियर शुरुआत से ही इस विडंबना की बेहतर मिसाल है।आज विरोधी यशोगान करते हैं और समर्थक बिना शर्त 'यसमैन' बन कर फख्र महसूस करते हैं।क्या नरेंद्र मोदी का 'अच्छाई नियतांक' अचानक ही बहुगुणित नहीं हो गया?क्यों?

अंग्रेजी शब्द 'पर्सनैलिटी' लैटिन मूल 'पर्सोना' से उद्भूत है जिसका  अर्थ है 'मास्क'. अच्छी पर्सनैलिटी अपने प्रभावी मास्क के समानांतर चलती है।मास्क मुक्त व्यक्तित्व एक जोखिम है।डिप्लोमेसी रहित व्यवहार दूसरा  जोखिम है।सारांश ये कि बड़ी कठिन है डगर सामाजिकता- व्यवहारिकता और दुनियादारी की।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

एक लघु कथा



एक लघु कथा

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विद्रोह के स्वर



जब तक मौन रही इस जग में ,
बंधन बंधे रहे इन पग में ,
जब-जब वरण किये कर्त्तव्य ,
बांटा  निश्छल स्नेह प्यार ,
तब-तब वंचित हो अधिकारों से ,
भोगा शोषण अत्याचार .

अब शेष नहीं है सहनशीलता ,
कि देखूं इन दुर्योगों का पुनार्विस्तर ,
पुरुषों की निर्मित सीमओं को,
फिर से परिभाषित कर दूंगी मै,
सीमित होंगी सीमाए सब ,
उन्मुक्त गगन विचरुंगी मैं,

यदि पुरुषों का है यही पूर्वाग्रह ,
कि नारी तो केवल अबला है ,
तो तज ममता की वो प्रतिमूरत,
धर काली - चंडी का रूप विकट,
ये पूर्वाग्रह भी हर लूंगी मैं ,

नहीं दंभ ,कोई नहीं दुराग्रह,
नहीं याचना मात्र आग्रह ,
जिसने तुमको सौंपा जीवन,
जिसने तुमको बख्शी साँसे,
उसको तो आज उभरने दो ,
वाणी से डर के मेरी ,
यदि मुक्त कंठ मुझे दे न सको ,
मुझे मुक्त श्वांस तो भरने दो ,
मुझे मुक्त श्वांस  तो भरने दो.

                                  -विकल 

 

बुधवार, 25 मई 2011

शिवांश

शिव ...........प्यारे  शिव  
 
उसने पूछा ,

मेरी हथेली में है क्या,

लकीरों के सिवा?


मेरा जवाब-

"गर्म खून,

फौलादी हड्डियाँ ,

दायें हाथ में पुरुषार्थ,

बाएं हाथ में विजय,

और,

हर रोम में समाये हैं ,

शिव और शिवा,

लकीरों के सिवा."


बुधवार, 18 मई 2011

जीवन अभिलाषा






रोको मत मुझको बढ़ने दो

टोको मत बस मुझे कहने दो


मुझे हद से आज गुजरने दो

तुम हद से आज गुजरने दो


जीवन की बोझिल राहों से

 कुछ स्वर्णिम स्वप्न तो चुनने दो

 मुझे जीवन सप्तक सुनने दो


 रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

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जब शब्द मिलेंगे जीवन को

 तो सृजित होंगी सुन्दर रचना


मुख की जिव्हा भले मौन रहे

 चीखेगी अपनी अंतर रसना


वाणी को मुखरित होने दो

 वर्णों को आज विचरने दो
 




जीवन की नीरव राहों में

 सृजन के कुछ स्वर भरने दो


रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

रविवार, 15 मई 2011

यादें .


 


ज़मीन

ज़मीन 

अहम् को चुनौती देता एक शेर लिख रहा हूँ...



"ऐसी परवाज़ की बुलंदियों पे,इतराने का सबब क्या

जिसका आग़ाज़ भी ज़मीं हो और अंजाम भी ज़मीं."



हमारी ज़िन्दगी धरती से शुरू होती है हर व्यक्ति एक ऊंचाई छूता है ,फिर संक्षिप्त विश्राम या चिर विश्राम के लिए धरती की ही शरण लेता है तो.....अहम् क्यों विकराल हो हमारे विकास के साथ.
 

शनिवार, 14 मई 2011

मध्यांतर

अध्यात्म और आत्म को समाहित कर अभिव्यक्ति का प्रयास है ......वैसे भी ये अन्तर -अन्वेषण प्रति दिन के जीवन में महत्वपूर्ण है.



"आगमन' के उन क्षणों में
था में अतीत मुक्त
भविष्ययुक्त मात्र भविष्ययुक्त

'गमन' के उन क्षणों में
पुनः हो जाऊंगा अतीत युक्त
मात्र अतीत युक्त

गमन-आगमन के इस वृतांत में
होगा एक 'मध्यांतर' भी
जिसे हम जीवन कहेंगे
चाहूँगा ये मध्यांतर हो

कालातीत ,कालनिरपेक्ष .
......और निसंदेह कालजयी ."