बुधवार, 25 मई 2011

शिवांश

शिव ...........प्यारे  शिव  
 
उसने पूछा ,

मेरी हथेली में है क्या,

लकीरों के सिवा?


मेरा जवाब-

"गर्म खून,

फौलादी हड्डियाँ ,

दायें हाथ में पुरुषार्थ,

बाएं हाथ में विजय,

और,

हर रोम में समाये हैं ,

शिव और शिवा,

लकीरों के सिवा."


बुधवार, 18 मई 2011

जीवन अभिलाषा






रोको मत मुझको बढ़ने दो

टोको मत बस मुझे कहने दो


मुझे हद से आज गुजरने दो

तुम हद से आज गुजरने दो


जीवन की बोझिल राहों से

 कुछ स्वर्णिम स्वप्न तो चुनने दो

 मुझे जीवन सप्तक सुनने दो


 रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

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जब शब्द मिलेंगे जीवन को

 तो सृजित होंगी सुन्दर रचना


मुख की जिव्हा भले मौन रहे

 चीखेगी अपनी अंतर रसना


वाणी को मुखरित होने दो

 वर्णों को आज विचरने दो
 




जीवन की नीरव राहों में

 सृजन के कुछ स्वर भरने दो


रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

रविवार, 15 मई 2011

यादें .


 


ज़मीन

ज़मीन 

अहम् को चुनौती देता एक शेर लिख रहा हूँ...



"ऐसी परवाज़ की बुलंदियों पे,इतराने का सबब क्या

जिसका आग़ाज़ भी ज़मीं हो और अंजाम भी ज़मीं."



हमारी ज़िन्दगी धरती से शुरू होती है हर व्यक्ति एक ऊंचाई छूता है ,फिर संक्षिप्त विश्राम या चिर विश्राम के लिए धरती की ही शरण लेता है तो.....अहम् क्यों विकराल हो हमारे विकास के साथ.
 

शनिवार, 14 मई 2011

मध्यांतर

अध्यात्म और आत्म को समाहित कर अभिव्यक्ति का प्रयास है ......वैसे भी ये अन्तर -अन्वेषण प्रति दिन के जीवन में महत्वपूर्ण है.



"आगमन' के उन क्षणों में
था में अतीत मुक्त
भविष्ययुक्त मात्र भविष्ययुक्त

'गमन' के उन क्षणों में
पुनः हो जाऊंगा अतीत युक्त
मात्र अतीत युक्त

गमन-आगमन के इस वृतांत में
होगा एक 'मध्यांतर' भी
जिसे हम जीवन कहेंगे
चाहूँगा ये मध्यांतर हो

कालातीत ,कालनिरपेक्ष .
......और निसंदेह कालजयी ."