बुधवार, 18 मई 2011

जीवन अभिलाषा






रोको मत मुझको बढ़ने दो

टोको मत बस मुझे कहने दो


मुझे हद से आज गुजरने दो

तुम हद से आज गुजरने दो


जीवन की बोझिल राहों से

 कुछ स्वर्णिम स्वप्न तो चुनने दो

 मुझे जीवन सप्तक सुनने दो


 रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

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जब शब्द मिलेंगे जीवन को

 तो सृजित होंगी सुन्दर रचना


मुख की जिव्हा भले मौन रहे

 चीखेगी अपनी अंतर रसना


वाणी को मुखरित होने दो

 वर्णों को आज विचरने दो
 




जीवन की नीरव राहों में

 सृजन के कुछ स्वर भरने दो


रोको मत मुझको बढ़ने दो

 टोको मत बस मुझे कहने दो

4 टिप्‍पणियां:

  1. रचना होगी
    ज़रूर होगी
    बूँद बनती है सागर
    अतल में खोने के बाद
    स्वप्न होता है फलित
    विसर्जित होने के बाद
    रचना होगी
    ज़रूर होगी ...

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  2. एवमस्तु!
    धन्यवाद ,प्रेम जी ,ब्लॉग पर आकर स्नेह देने के लिए .सुन्दर शब्द भावानुभूति से भरे हो तो दोतरफा तुष्टि देते हैं .प्यार बनाये रखें.

    जवाब देंहटाएं

बोल ये थोडा वक़्त बहुत है ,जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले .......