बुधवार, 25 मई 2011

शिवांश

शिव ...........प्यारे  शिव  
 
उसने पूछा ,

मेरी हथेली में है क्या,

लकीरों के सिवा?


मेरा जवाब-

"गर्म खून,

फौलादी हड्डियाँ ,

दायें हाथ में पुरुषार्थ,

बाएं हाथ में विजय,

और,

हर रोम में समाये हैं ,

शिव और शिवा,

लकीरों के सिवा."


2 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद जतिन कमेन्ट के लिए .कवि हूँ नहीं था ...........शायद अभी कुछ बचा हो देखना पड़ेगा ........अभी तो पुरानी कवितायेँ ही ब्लॉग पर डाल रहा हूँ .थैंक्स .

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बोल ये थोडा वक़्त बहुत है ,जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले .......